याद तुम्हारी आती है!!

आज एक पुरुष की कलम से

टूट कर मैं तो बिखर गया था…
जब तुम छोड़ गईं थीं मुझको..
बंधन सारे तोड़ दिए..
अकेला छोड़ गईं तुम मुझको!

उस टिप टिप करती बारिश में..
जब हम तुम भीगा करते थे..
जीवन के वह सुंदर सपने..
साथ में बुना हम करते थे!

शूल से दिल में चुभते हैं….
जब याद तुम्हारी आती है….
मन बैरागी हो जाता है….
आँखें पथरा सी जाती हैं !

हवा का झोखा आता है तो..
लगता है तुम आओगी…
अपने कोमल हाथों के स्पर्श से..
छूकर मुझे जगाओगी!

घनघोर घटाएं छाती हैं तो…
मन घबरा सा जाता है…
मौत का वह घना साया तब…
मुझको याद आ जाता है!

सुईयाँ जब चुभती थीं तुमको…
तब दर्द मुझे भी होता था…
सामने पत्थर बन जाता था..
पर अकेले में मैं रोता था!

कांधे पर मेरे सर रखकर…
बच्चे जब भी रोते थे…
माँ की याद में तड़प तड़पकर…
रात को तकिए भिगोते थे!

चीरकर रख दूँ सीना अपना…
तब मन मेरा यह करता था…
खींच कर ले आऊँ तुमको मैं..
बातें करने को जी करता था!

एक टीस सी मन मे चुभती है….
पर सारे गम सह लेता हूँ…
बच्चों के दिल पर क्या बीतेगी…
यह सोचकर सब्र मै करता हूँ!

वक्त गुजरता जाता है
पर तुम्हारी याद सताती है….
शूल से दिल मे चुभते हैं….
जब तुम्हारी याद आती है!
शालिनी

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